बिचौलिया मतलब रेलवे के तत्काल टिकट की गारंटी
सुपौल : रेलवे के क्षेत्र में सुपौल विपन्न है. पड़ोसी जिले सहरसा, मधेपुरा व अररिया में बड़ी लाइन का रेल नेटवर्क कार्य कर रहा है और आम जनों को यातायात के क्षेत्र में भारी राहत प्रदान है. वहीं सुपौल वासियों को आज भी छुक छुक रेल पर निर्भर होना पड़ रहा है.
15 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से जिले के आधे क्षेत्र में चलती रेल जहां आम लोगों को अंगरेज जमाने के दिनों की याद ताजा कर रहा है. वहीं रेल टिकट के आरक्षण के लिए चौबीस घंटे पूर्व से कतार में लगना पड़ता है. इस दौरान यदि शौच के लिए भी जाना है तो अपने बदले किसी को कतार में खड़ी करना आवश्यक है.
इतने मशक्कत के बाद भी यह गारंटी नहीं कि उन्हें टिकट मिल ही जायेगा. आरक्षित टिकट प्राप्त करने का सफलतम जरिया यदि चाहिये तो बिचौलियों के शरण में जाना होगा. बिचौलिया भी दूर के नहीं होते . रात दिन रेल परिसर को अपने कमाई का जरिया बनाने वाले ऐसे लोगों की जहां इस गोरखधंधे से चांदी कट रही है. वहीं आम यात्रियों की परेशानी देखते ही बनती है.
खास कर तत्काल टिकट के आरक्षण के लिए और अधिक मारामारी की स्थिति होती है. एक या दो नंबर पर खड़ा होने के लिये लोगों में होड़ मची रहती है. लेकिन यहां खड़ा होना आम आदमी के नसीब की बात नहीं है.
यह जगह सुरक्षित होता है कथित बिचौलियों के लिए. ज्यादा रार मचाने पर आर पी एफ से संरक्षित ये बिचौलिये देख लेने की भी धमकी देते हैं. एक तो चोरी उपर से सीना जोड़ी के इन मामलों की खबर भली भांति स्थानीय रेल प्रशासन को है. चिन्हित आधा दर्जन बिचौलिया रेल प्रशासन की नजरों से ओझल हों ऐसा भी नहीं है. इधर हाल के दिनों में स्टेशन अधीक्षक द्वारा तत्काल आरक्षित टिकट लेने हेतु नायाब तरीका ईजाद किया गया है.
जिन्हें टिकट लेनी है उन्हें अधीक्षक से टोकन लेकर कतार में लगना होगा. तब जाकर वे टिकट लेने के हकदार होंगे. ऐसा माना जा सकता है कि सोच सकारात्मक हो और विधि व्यवस्था बहाल रखने की गरज से ऐसी व्यवस्था की गयी हो. टोकन पर नंबर भी अंकित होता है कि उन्हें कितने नंबर पर खड़ा होना है. लेकिन मंशा व नियत यहां भी दगा दे रही है.
एक व दो नंबर के टोकन आम यात्रियों को आज तक नहीं मिले. एक या दो नंबर का यह टोकन रोजाना ऐसे चिन्हित बिचौलियों के हाथों में होते हैं. ऐसे लोग प्रतिदिन एक नंबर पर कतार में खड़े मिलते हैं.
विकट स्थिति तब उत्पन्न होती है जब 24 घंटे खड़े रहने के बाद टिकट नहीं मिलता. आये दिन इस समस्या से जूझ रहे यात्रियों को सुविधा प्रदान करने में स्थानीये रेल प्रशासन नाकाम साबित हो रहा है.
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