कोसी के इस पिछड़े इलाके में रेलवे का अमान परिवर्तन आज भी सपना ही बना हुआ है। हालांकि रहनुमाओं की कृपा दृष्टि पड़ी और विभाग ने तत्परता दिखाते हुए 20 जनवरी 2012 से रेलखंड के आधे हिस्से राघोपुर-फारबिसगंज के बीच मेगा ब्लाक कर दिया। हठात ऐसा लगा कि अब कोसी के इलाके के भी दिन बहुरेंगे और रेलवे के मामले में यह पिछड़ा इलाका जल्द ही देश के अन्य भागों से जुड़ जायेगा। लेकिन परिवर्तन की गति इतनी धीमी पड़ गई है कि अब तक ऐसा कुछ दिख नहीं रहा जिससे यह एहसास हो सके कि वाकई परिवर्तन होने को है।
नब्बे के दशक में पूरे देश में बड़ी रेल लाइन का जाल बिछना शुरु हो गया। साल-दर-साल बीतते गये लेकिन कोसी की बारी नहीं आई। सहरसा से आवाज संसद तक गूंजी, बड़ी रेल लाइन 2004 में सहरसा तक पहुंची। सुपौल के लोगों को लगने लगा कि अब वो दिन दूर नहीं। लक्षण भी दिखे थे। बाजपेयी सरकार के रेलमंत्री नीतीश कुमार, रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीश,खाद्य आपूर्ति मंत्री शरद यादव फरवरी 2004 को सरायगढ़ पहुंचे थे और सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड की नींव रखी थी। रेलमंत्री ने कहा था कि सरायगढ़ से सकरी और सहरसा से फारबिसगंज तक अमान परिवर्तन की इस परियोजना की लागत 335 करोड़ रुपये की है। रक्षा मंत्रालय से स्वीकृति के बाद ही 2003-04 के पूरक बजट में इसे लिया गया। उस समय अपने संबोधन में नेताओं ने सुरक्षा व सामरिक दृष्टिकोण से सीमावर्ती इलाके में रेलवे की महत्वपूर्ण भूमिका को बतलाया था। चुनाव का वक्त आ गया सत्ता पलट गई मामला ठंडा सा गया। जब लालू प्रसाद रेलमंत्री हुए तो फिर से उम्मीद की किरण जगी। कोसी महासेतु में प्रगति दिखाई देने लगी। लेकिन अमान परिवर्तन की रोशनी अबकी मधेपुरा के हिस्से चली गयी और एकबार फिर चूक गया सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड।
हालांकि इसके भी दिन बहुरे। इस रेलखंड पर भी अमान परिवर्तन की सुगबुगाहट हुई। काम को दो हिस्से में बांटा गया। राघोपुर व फारबिसगंज के बीच मेगा ब्लाक भी हुआ लेकिन पता नहीं कि काम में गति देने के लिये आखिर किस बात का हो रहा है इंतजार। जानकारी अनुसार अमान परिवर्तन के कार्य का जिम्मा दो कंपनी केईसी इन्टरनेशनल लि. एवं डेल्को इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा. लि.को सौंपी गई है। जिस रफ्तार से मेगा ब्लाक करने में विभाग ने चुस्ती दिखाई निर्माण कार्य उतना ही सुस्त दिखाई दे रहा है।
No comments:
Post a Comment